Poems of Baba Kalpnesh/ बाबा कल्पनेश की कविताएँ
Poems of Baba Kalpnesh
Table of Contents
1.कोरोना
कोरोना का भय अति भारी।
डरपे संत और नर-नारी।।
पुण्य लाभ लेने सब आए।
पर कोरोना से घबडाए।।
सब पर बीस पड़ा कोरोना।
डरे खालसा कोना-कोना।।
भाग रहे खालसा समेटे।
कुछ अवश्य चिर निद्रा लेटे।।
स्नान हुआ शाही अति सुंदर।
कुछ भय जागा सबके अंदर।।
कुंभ पर्व यह याद रहेगा।
समय बीतता हुआ कहेगा।।
निज गृह नगर छोड़ सब आए।
पर कोरोना भय दिखलाए।।
यह सबसे इक्कीस हो गया।
धीरज का भी धीर खो गया।।
गत से आगत है यह भारी।
अधिक बीस है यह अँधियारी।।
आहत विश्व हुआ है पूरा।
क्रूर-कुटिल कोरोना छूरा।।
सँभलो सब जन मेरे भाई।
विश्व पटल पर विपदा आई।।
जीवन तो सब को अति प्यारा।
कोरोना लगता अति खारा।।
दूर-दूर रहना मजबूरी।
पर पालन है बहुत जरूरी।।
प्रातः अति तड़के जो जागे।
निश्चय रोग दूर हो भागे।।
बाहर-भीतर रहे सफाई।
भागे रोग हवा की नाई।।
खुली हवा प्रातः की ले ले।
जग में वह निर्भय हो खेले।।
तन का श्रम वरदान कहावे।
यह जीवन में सुख बरसावे।।
श्रम साधक को रोग न आवे।
नित्य स्वस्थ जीवन को पावे।।
श्रम से नाता सब जन जोड़ें।
स्वस्थ दिशा को जीवन मोड़ें।।
नित प्रसन्न रहना जो जाने।
विजय नित्य उसको पहचाने।।
2 .भक्ति गीत
आधार छंद-भुजंगप्रयात
विधान-122 122 122 122
सियाराम गाओ बताओ सुनाओ ।
यही जीव का लक्ष्य जानो जनाओ।।
जहाँ प्रेम पाते सदा दौड़ आते।
स्वयं भक्त बोझा उठा शीश धाते।।
बड़ी भक्ति प्यारी सभी संत गाए।
उन्हे तो सदा से यही है लुभाए।।
चलो आज साथी सभी को बताओ।
सियाराम गाओ-बताओ-सुनाओ।।
सभी मार्ग छोड़ो सभी गान छोड़ो।
जहाँ प्रेम धारा उसी ओर मोड़ो।।
यही साध्य जानो मिला साधने को।
उन्हीं ने दिया नित्य आराधने को।।
सभी त्याग माया भरे प्रेम धाओ।
सियाराम गाओ-बताओ-सुनाओ।।
बनो आलसी ना उठो यार मेरे।
करो गान साथी सुनाओ सबेरे।।
न सोना न चाँदी सभी वस्तु त्यागो।
उन्ही से उन्हीं को सदा आप मांगो।।
रहो संत जैसे हरि: रूप ध्याओ।
सियाराम गाओ-बताओ-सुनाओ।।
लिए फूल माला चली भक्त टोली।
सजा फूल माला लगा माथ रोली।।
सभी प्रेम डूबे नहा आज गंगा।
लखो रे इन्हें ये दिखें खूब चंगा।।
झुका शीश टेको चले साथ आओ।
सियाराम गाओ-बताओ-सुनाओ।।
कहें वेद सारे कहें संत सारे।
भवानी पती ही सभी को सँवारे।।
रमा ईश प्यारे लगाते किनारे।
सदा प्राण प्यारे यही कृष्ण प्यारे।।
सुदामा भरे भाव खाओ-खिलाओ।
सिया राम गाओ-बताओ-सुनाओ।।
3 .गीतिका
2122 2122 212
कौन अपना है यहाँ पर बोलिए।
सब जनों के लिए ही उर खोलिए।
आप आए हो कहो किसके लिए।
ले तराजू हाथ में यह तोलिए।।
आँख पानी भर यहाँ से चल दिए।
क्यों नही निज हृदय अपना धो लिए।।
आप का संसार यह पूरा बने।
आप बस मिष्टी भरा रस घोलिए।।
जो मिला रस ईश से वह खो चले
पेट भर कर नींद जो जन सो लिए।
ईश से मिष्टी भरा जीवन मिला।
पर अभागे ख़ार आँसू ढो लिए।।
रात जिनको प्रिय लगे दिन कष्ट हो।
जानिए वे तो अँधेरा हो लिए।।
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