Kraanti- Geet | क्रांति- गीत / सीताराम चौहान पथिक

Kraanti- Geet | क्रांति- गीत / सीताराम चौहान पथिक

क्रांति- गीत

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मम हॄदय नवल ज्वाला सुलगा ,
जो सुलग रही प्रचण्ड कर ।
है शिथिल हॄदय मनु का अभी
बुझती ज्वाला प्रचण्ड कर ।।

अरे आज क्यों शिथिल हुए ,
मेरी वीणा के तार ॽ
छेड़ो क्रांति- तरंगे ऐसी  ,
आलस देऊं बिसार ।।

रुद्र देव, क्यों मौन हुए हो ,
खोलो तॄतीय नेत्र तुम आज ।
आशाओं की गंग  प्रवाहित ,
कर दो भस्म निराशा आज।।

इन्द्र तुम्ही वॄष्टि कर डालो ,
प्रेम सुखों सदभावो  की ।
वॄष्टि का जल-प्रलय पलट दे ,
नाव कपट – छल भावों की ।।

अरे, मयंक  निकल तू नभ से ,
विस्तृत कर निज सुखद प्रकाश ।
अपनी मधुरिम किरणों द्वारा ,
जग को दे सुशान्ति आभास।।

हे ऑधी – तूफान उठो तुम ,
उठो भयंकर  घटा निराली ।
ध्वंस  करो कलियुग के दुर्गुण ,
फूटे तब नव-युग की लाली।।

हे ब्रह्मा , पुनः सॄजन करो तुम
सौम्य शान्ति सुखमय संसार ।
द्वेष ईर्ष्या वैमनस्य कै ,
मिट जाएं समस्त व्यापार ।।

ब्रह्मा उठो, उठो कामारि ,
उठो इंद्र , और उठो मयंका  ।
पथिक, लखो बौराई सॄष्टि को,
बाज उठे नवयुग का डंका ।।


जनमत क्रांति

जागो भारत के सोए वीर,
यह समय क्रांति के नाम ।
जो सुशुप्त अथवा तटस्थ हैं ,
मिट       जाएगा    नाम ।।

देखो , अरुणोदय को ,
जिसने उगला लाल गुलाल ।
ध्वस्त    हो   रही   तानाशाही ,
थामें    है   युवक   मशाल ।।

क्रांति-काल की बेला है ,
सब     उठो , रौद्र    भरो ।
गणतंत्र भ्रष्ट प्रतिनिधियों से ,
आओ , इसका उपचार करो।

अब शल्य चिकित्सा के द्वारा
जर्जर समाज का कोढ़ हरो ।
जयचंदो मीर  जाफिरो से ,
भारत संसद  को मुक्त करो।

देखो, सत्ता के गलियारों में ,
फैले – – दलाल भ्रष्टाचारी ।
जन-मानस को मिल झकझोरो ,
जन-जन में फूंको चिंगारी  ।।

अब राष्ट्र-भावना हुई ध्वस्त ,
परिवार-वाद की बैल चढ़ी ।
सत्ता हथियाने की खातिर ,
अब वोट-बैंक की डोर बढ़ी।

भारत-भू की सम्पदा आज ,
चौराहों पर नीलाम हुई ।
सत्ता के शीर्ष पदों पर भी ,
कालिख से छवि बदनाम हुई।

सब उठो, तिरंगे को थामो ,
स्वाभिमान  को ना बिकने दो ।
सीमाओं पर गोलाबारी ,
विध्वंस करो, ना टिकने दो।।

हमने स्वतंत्रता कैसे ली ॽ
सावरकर से सीखो कोई ।
बलिदानों की लम्बी गाथा ,
शहीदों से सीखो कोई ।।

सत्ता से चिपके लोगों को ,
भूख और ग़रीबी समझाओ ।
है मताधिकार की शक्ति बहुत
अच्छे सुयोग्य प्रतिनिधि लाओ ।।

सब उठो, जागरण के द्वारा ,
स्वाभिमान देश में तुम भर दो
पचहत्तर वर्षों की बदहाली ,
हो दूर, मंत्र  ऐसा कर दो ।।

अब होगा क्रांति का शंखनाद
जनता अब समझ गई है सब
ओछे हथकंडे तुष्टिकरण ,
जनमत कर देगा निर्णय अब।।

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सीताराम चौहान पथिक

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