ग़ज़ल बिछुडता है दिले- दिलबर | Ghazal Bichhuta Hai Dile Dilbar
ग़ज़ल बिछुडता है दिले- दिलबर | Ghazal Bichhuta Hai Dile Dilbar
बिछुडता है दिले- दिलबर ,
तो दिल ना- साज होता है ।
तडपता है सुबह और शाम ,
बे-आवाज होता है ।।
आँसू नहीं दिखते ,
मगर सैलाब होता है ।
ये गहरा जख्म है यारो ,
दुःखी अंदाज होता है ।।
ना छेड़ो ऐसे आशिक को,
सताओ ना कभी इनको ।
ये जख्मी दिल तड़प उठे ,
तो बस अभिशाप होता है।।
ना हो दिलदार दुनियां में ,
उसे बस लाश ही समझो ।
उसी के दम से हर —,
इंसान तीरंदाज होता है ।।
यही ताकत है इंसा की ,
सितारे जमीं पर ला दे ।
बिछुड़ जाए पथिक दिलबर ,
हसीं मौसम भी रोता है ।।
- दिलबर – दिल के करीब
- ना-साज – दुःखी,
- सैलाब – बाढ़ ,
- तीरंदाज – बहादुर , सूरमा
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