कटु – सत्य / सीताराम चौहान पथिक
कटु – सत्य
मानव जीवन का अंतिम कटु सत्य ,
धधकती चिता का शमन ।
देख कर लौटा हूं राजनेता की चिता ।
प्रश्न कचोटता है , हॄदय झकझोरता है ,
क्या इसी दिन के लिए मानव ,
अथाह सम्पत्ति के स्रोत खोजता है ॽ
जीवन के रण में , प्रत्येक चरण में ,
अविजित रहने की उत्कट लालसा ।
किन्तु मॄत्यु का अदॄष्य हाथ मानव की ,
समस्त अनैतिक गतिविधियों पर ,
ग्रहण बन कर छाया है ।
क्यों नहीं सोचता यह मानव ॽ
एक दिन जाना है , सभी तामझाम छोड़ कर ,
क्यों नहीं सच्ची निष्ठा से ,
प्रभु को स्मरण करता ॽ
जोड़-तोड़ की राजनीति काम नहीं आएगी ,
सच्चा सरल हॄदय होना परमावश्यक है ।
सच्चिदानंद प्राप्ति के लिए ।।
आज लौटा हूं देख कर दिव्य चिता – – – –
जहां समाप्त हो जाते हैं – –
सांसारिक – प्रपंच ।
कुछ क्षणों के लिए ही सही ।
आना है प्रत्येक मानव को यहां एक दिन ,
कटु सत्य मानव क्यों नहीं पहचानता ॽ
कबीर – नानक की सत्य वाणी का मर्म ,
जान कर भी – पथिक ,
क्यों है नकारता ॽ ॽ
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