Hindi Poem sankalp-संकल्प/प्रेमलता शर्मा

संकल्प

(Hindi Poem sankalp)


धरा की तरह सहनशील बनो
पर्वत   की तरह अड़िग  रहो
अगर मनुष्य तुम्हें कहलाना है

अपने मन में दृढ़ संकल्प करो
दूर क्षितिज पर रातों को जब
तारे टिमटिमाते हैं
उन तारों में एक सितारा तुम भी बन जाओगे
अगर करोगे कुछ ऐसा तो तुम
इस दुनिया पर छा जाओगे
मंजिल जब तक मिल ना जाए चलते ही तुम जाओ
रास्ते खुद मंजिल बनेगी
धैर्य नहीं तुम छोड़ो
लक्ष्य अगर सामने हो तो दुनिया से टकरा जाओ
खुद में इतनी हिम्मत भर लो
खुद ही से टकरा जाओ
कैसे नहीं मिलेगी मंजिल तुमको
आत्मविश्वास कभी न खोओ
मानवता की कसौटी पर
खुद को कस कर देखो
मनुष्य तभी कहलाओगे
यह संकल्प हृदय में करके देखो


Hindi- Poem- sankalp
प्रेमलता शर्मा

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