जागरण गीत | सजल | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’
जागरण गीत
अब तो तू उठ जाग,
भला क्यों सोया है ,
चिन्तन कर सौ बार,
कहॉ क्या खोया है।टेक।
कण-कण रक्त सनी यह धरती,
गुम सुम गंगा – जमुना बहती ।
तरु-तर में आक्रोश झलकता –
बनीं बिहंगम सुरभि मचलती ।
निज की कर पहचान,
कहॉ तू खोया है।
अब तो तू उठ जाग,
भला क्यों सोया है।1।
राष्ट्र-धर्म के लिए समर्पित,
सुत ईंटे-गारों में चुनवाया।
नयन हुए पाषाण हृदय के,
उफ् अधरों तक न आ पाया।
बलिदानों ने फिर-फिर
नयन भिगोया है।
अब तो तू उठ जाग,
भला क्यों सोया है।2।
अब भी नहीं जगा तो सुन ,
इतिहास तुझे धिक्कारेगा ।
दूर नहीं दिन नौनिहाल को,
जब दुष्ट कौम दुत्कारेगा।
षडयंत्र भरा हर बीज,
जयचंदों ने बोया है।
अब तो तू उठ जाग,
भला क्यों सोया है।3।
भारत का भूगोल गलत,
हमको आज बदलना होगा।
पौरुष की गाथाओं से ,
अब इतिहास संवरना होगा।
चलो समय के साथ,
दाग समय ने धोया है।
अब तो तू उठ जाग,
भला क्यों सोया है।4।
सजल
खयाल मेरा है, तो तेरा होगा,
ये रात है तो क्या सबेरा होगा।1।
तू जो चाहे, तो तेरी जुल्फों में,
मेरे हसीं ख्वाबों का बसेरा होगा।2।
हसीं और भी हैं जमाने में यहॉ,
तेरे सिवा सबमें सनम ,बखेरा होगा।3।
हसरतें दिल की बेदम हुई जातीं,
तेरी चाहतों का कब फेरा होगा।4।
ठूंठ सी इस जिन्दगी को बहार दे दे,
न जाने कब कहॉ किसका डेरा होगा।5।
खुदा आबाद रखे तुझको, सल्तनत तेरी,
दुआ साथ रहेगी,जब गर्दिश ने घेरा होगा।6।
किस्मत के रूबरू ,सिर झुका लिया,
वर्ना सोचा नहीं था,दिल तेरा होगा।7।
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