Hindi- Poetry -Mothers- day

Hindi Poetry Mothers day -मां कहां हो/ संपूर्णानंद मिश्र

Hindi Poetry Mothers day

मां कहां हो?


दुनिया की नज़रों से छुपाती थी
मुझे अपने सीने से
लगाती थी
तुम्हारे दूध का कोई मोल नहीं
मां तेरी ममता का कोई तोल नहीं
गीले में सोकर
सुखे में सुलाती थी
सारी रात जगकर
लोरियां सुनाती थी
ममता के जल से ही नहलाती थी
रुठने पर सौ- सौ बार मनाती थी
मां आज भी तुम्हारा
वही बच्चा हूं
चाहे जितना ही बड़ा हो जाऊं
तुम्हारी नज़रों में अब भी ‌कच्चा हूं
तुम्हारे हाथों से बनी
ममता से सनी चित्तीदार रोटियां
खाए सालों गुज़र गए
व्यंजन तो बहुत खाए
लेकिन स्वाद न अब वो आए
तुम कहां चली गई हो मां ?
एक बार लौट के तो आ जाओ
हर मुसीबत में खड़ी हो जाती थी
पिता की छड़ी से प्राय: बचाती थी
चट्टान बन कर मुसीबतों की धारा ही बदल देती थी
मुझे अपने सीने से लगाकर नव जीवन दे देती थी
क्रूर काल के पंजे ने तुम्हें छीन लिया था
निष्ठुर नियति ने मुझे मात्रृहीन कर दिया था
एक बार लौट कर आ जाओ मां
या जिस भी लोक में हो
वहीं से एक बार फिर
ममता के जल से नहला दो मां
मां आज भी तुम्हारा
वही बच्चा हूं
जितना भी बड़ा हो जाऊं
तुम्हारी
नज़रों में अब भी कच्चा हूं ।


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डॉ. सम्पूर्णान्द मिश्र

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