तपिश की अनुभूतियों के कुछ दोहे : नरेंद्र सिंह बघेल
तपिश की अनुभूतियों के कुछ दोहे : नरेंद्र सिंह बघेल
सूरज की ऐसी तपिश,
देखी पहली बार ।
भुवन भाष्कर क्रोध में,
करते यह व्यवहार ।।1।।
प्रकृति के इस तंत्र को,
हमने दिया निचोड़ ।
इसीलिए यह मिल रहा,
ब्याज सहित सब जोड़ ।।2।।
भीषण गर्मी का कहर ,
जलने लगे शरीर ।
बंद घरों में दिख रही,
दावानल की पीर ।।3।।
गर्मी के संताप से ,
बेसुध हुआ शरीर ।
मन को भी आंसन लगी,
पहुनाई की पीर ।।4।।
बच्चे दुबके गोद में ,
माँ की शीतल छाँव ।
गर्मी से तपने लगे ,
आज हमारे गाँव ।।5।।
क्लांत पथिक है ढ़ूंढ़ता ,
अमराई की छाँव ।
थके पाँव कहने लगे,
दूर बहुत है गाँव ।।6।।
मृगमरीचिका हो गई,
शीतल ठंडी छाँव ।
बूढ़ा बरगद है कहे ,
बैठो मेरी ठाँव ।।7।।
कुहू-कुहू करने लगी,
कोयलिया नित भोर ।
सब खग भी करने लगे ,
कलरव का यह शोर ।।8।।
नीम करौंदा की महक,
गली-गली हर ठाँव ।
मादक खुशबू से भरे,
आज हमारे गाँव ।।9।।
भिनसारे महुआ गिरे ,
शीतल बहे बयार ।
ननद कहे भउजी उठो
चलो बुनें रसदार ।।10।।
गोरी सोवै सेज पर ,
मुख पर डारे केश ।
खरहट खटिया भी लगे,
फूलों वाली सेज ।।11।।
केशराशि से झाँकता ,
चंदा सा प्रतिरूप ।
चंदा को फीका करे,
दिव्य अलौकिक रूप ।।12।।
– नरेन्द्र सिंह बघेल