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मांँ केवल इक शब्द नहीं / राजेन्द्र वर्मा राज

मांँ केवल इक शब्द नहीं, वह शब्दकोश से ज़्यादा है।
अंतर्मन से महसूस करो वह अंतर्-बोध से ज़्यादा है।।
वह प्यार भरा स्पर्श उसका करता है तन की थकन दूर।
वह ममतामयी डपट उसकी देती है मन को अति सुकून।।
वह छू ले तो बासी रोटी पकवान सरीखी लगती है।
मुझको मेरी मांँ हर पल भगवान सरीखी लगती है।।
कोई कितना भी सोचे वह सबकी सोच से ज़्यादा है।
माँ केवल इक शब्द नहीं – – -1


मांँ से अस्तित्व जुड़ा सबका बिन माँ के कोई वजूद नहीं।
माँ के आँचल से ज़्यादा दुनिया में सुख मौजूद नहीं।।
मेरे तन की नस-नस में उसका ही लहू विचरता है।
उसकी आँखों में देखूं तो ही मेरा रूप निखरता है।।
मेरी नज़रों में और न कुछ भी उसकी गोद से ज़्यादा है।
माँ केवल इक शब्द नहीं – – -2


यह भरम पालना ठीक नहीं माँ एक दिवस तक सीमित है।
सीमा में समय भले ही हो, लेकिन माँ स्वयं असीमित है।।
यूँ तो माँ के चरणों में निज तन ,मन ,धन सब अर्पित है।
उसकी सेवा में दिवस नहीं, जीवन सम्पूर्ण समर्पित है।।
है कोषागार अगर दुनिया तो माँ हर कोष से ज़्यादा है।
मांँ केवल इक शब्द नहीं- – -3

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