सपनों में मॉ तुम ही तुम हो /हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

सपनों में मॉ तुम ही तुम हो।

धक-धक चलती सॉस मेरी तुम,
रोम-रोम में तुम ही तुम हो,
अधरों की मुसकान तुम्हीं से-
सपनों में मॉ तुम ही तुम हो।टेक।

तुमसे जीवन-जगत बना यह,
मॉ तुमसे सृष्टि मनोहारी।
स्वार्थ-मोह के बन्धन सारे-
कोई नहीं तुम सा उपकारी।
सर्वस्व समर्पित करने वाली,
मेरी मॉ बस तुम ही तुम हो।
अधरों की मुसकान तुम्हीं से,
सपनों में मॉ तुम ही तुम हो।1।

गिर-गिर उठ कर चलना मुझको,
हाथ पकड़ तुमने सिखलाई,
सत्य -न्याय पथ चलने वाली-
पगडंडी तुमने दिखलाई।
धर्म-कर्म सम्मान सभी का,
प्रतिरूपित मॉ,तुम ही तुम हो।
अधरों की मुसकान तुम्ही से,
सपनों में मॉ तुम ही तुम हो।2।

आदर्शों पर तेरे माते,
चलने का अभ्यास बनाया,
मातृभूमि हित सदा समर्पित-
विश्व-पूज्य इतिहास रचाया।
आशीष सहज विजयी भव का,
विस्तारित मॉ,तुम ही तुम हो।
अधरों की मुसकान तुम्हीं से,
सपनों में मॉ तुम ही तुम हो।3।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित ,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’,
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693

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