Mahila diwas par kavita/दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश”

मैं नारी हूं

(Mahila diwas par kavita)


मैं नारी हूं,मैं नारी हूं,
नारी बचन निभाती हूं।
छोटों से लेकर अग्रज तक,
अपना प्यार लुटाती हूं।
मैं चाची,नानी वैसी हूं,
अम्मा,बुआ और मौसी हूं।
पूरे घर की सेवा करती,
बहन और बेटी जैसी हूं।
मां ने सिखलाया जो मुझको,
दुनिया को मैं सिखालाती हूं।
मैं नारी हूं, मैं नारी हूं।
यह समाज मेरा कहलाता,
मुझको फिर क्यों डर है लगता।
जब भी बाहर मैं निकली हूं,
हर पग मुझको क्यों है छलता।
बेटी,बहन मुझे यदि समझो,
मैं सबकी आभारी हूं।
मैं नारी हूं, मैं नारी हूं।
केवल बहू जलाई जाती,
बेटी कभी नहीं जलती है।
यही बात मन की पीड़ा है,
अंदर-अंदर यह खलती है।
बेटी जैसा प्यार मुझे दो,
अपना दर्द सुनाती हूं।
मैं नारी हूं, मैं नारी हूं।
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Mahila- diwas-par- kavita
दुर्गा शंकर वर्मा “दुर्गेश” रायबरेली।

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