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कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा | इन्द्रेश भदौरिया | Awadhi Poetry

विश्व पर्यावरण दिवस पर –

कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा।

घर के भराँव छपरा छानी हेराने,
नहीं रहिं ग़इं अंगऩइया कटैं बिरवा।
कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा।

जंगल काटि-काटि म़उजै मारत,
सूखि परे नरवा ऩइया कटैं बिरवा।
कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा।

किरवा पतिंगवा मरि मिटि ज़इहैं,
काउ ख़इहैं चिऱइया कटैं बिरवा।
कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा।

अब तो चेतु लाव कुछ मन मा ,
नाहीं जीवन त़इयाँ कटैं बिरवा।
कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा।

बिरवा पाँच लगावो अब तो,
ब़इठैं सब जन छंइया कटैं बिरवा।
कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा।

वातावरण म तो बिसु भरिगा है,
च्यत़उ अबतो गोसंइया कटै बिरवा।
कहाँ रहिहैं चिऱइया? कटै बिरवा।

      इन्द्रेश भदौरिया   रायबरेली

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