Hindi kavita Giraavat/सीताराम चौहान पथिक

गिरावट ।।

(Hindi kavita Giraavat)


हम रहे ना हम,
तुम रहे ना तुम ,
जानवर थे हम ,
जानवर की दुम ।

इन्सान को क्या हो गया ,
हैवान अब वो हो गया ,
इंसानियत  रोती है अब ,
ईमान उसका खो गया ।

फुटपाथ पर बहता लहू ,
हालात बदतर हो गये ,
इन्सान मुर्दा हो गया ,
जज़्बात उसके सो गये ।

पत्थर शहर ये हो गये ,
इन्सान बुत से हो गये ,
शैतान हावी हो गया ,
हम सब खिलौने हो गये ।

कैसी चली है ये हवा ,
मानो ज़हर है घुल रहा ,
रिश्तों में बदबू आ रही ,
ईमान जैसे धुल रहा ।

ये कौन दिल में बैठ कर
मज़हब मैं नफ़रत भर रहा,
सोचो मेरे ऐ दोस्तों ,
इन्सान खुद से डर रहा ।

हम शक्ल से तो आदमी ,
लेकिन यकीन होता नहीं।
खूंखार  वहशी जानवर ,
बन जाएं कब पता नहीं ।

अल्लाह ने हमको मगर ,
बख्शी थी– नेहमत ज़िन्दगी
कुछ नेकियां  करते तो ये ,
पाकीज होती जिन्दगी ।

बख्शी थी जिसने ज़िन्दगी ,
हम दूर उससे हो गये ,
खुद ही खुदा बनते गए ,
नजरों से उसकी खो गये ।

भूला जो लौट आए अगर ,
भूला ना कहलाता है वो ,
भूलों से जो सीखें सबक ,
इन्सान कहलाता है वो ।

 अन्दर    के   खुदा   से ,
रू-ब – रू पहचान कर लें ,
भूल जा, नादानियों को ,
पथिक- तू भी ध्यान कर लें।

Hindi-kavita- Giraavat
सीताराम चौहान पथिक

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