आ जा रे गौरैया सुन ले |हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
आ जा रे गौरैया सुन ले।
आ जा रे गौरैया सुन ले,
तुझको पास बुलाऊॅ।
बैठ हथेली में तू मेरे,
दाना तुझे खिलाऊॅ।1।
दाना खाकर मन भर जाए,
पानी तुझे पिलाऊॅगा,
फुदक-फुदक तू ऑगन भर में,
खेले, साथ निभाऊॅगा।2।
छायादार घने पेड़ों की,
हरी-भरी हर डाली,
वहीं घोंसलों से कलरव की,
ध्वनि आती सुखद निराली।3।
मान रहा हूॅ पेड़ कटे हैं,
हरियाली के लाले हैं,
हरी-भरी धरती पर हमने,
निशिदिन डाके डाले हैं।4।
सुबह प्रभाती गीत तुम्हारे,
चह-चह बगिया करती,
सन्ध्या के झुरमुट में तुम ही,
फुदक-फुदक कर उड़ती।5।
आ जाओ फिर धूल उड़ाओ,
मौसम से बतियाओ,
खुशनुमा धरा के ऑचल को,
मेरे साथ सजाओ।6।
मस्त मगन तुम उड़ो गगन में,
सबकी खैर मनाओ,
सभी धरा के उपादान हैं,
सबसे प्रेम निभाओ।7।
रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010