कवि मन की व्यथा | डाॅ बी के वर्मा ‘शैदी’

कवि मन की व्यथा
लिखिबे कूँ अब कवित्त, होत नायं तनिक चित्त,
लिखें कौन के निमित्त? नाक-भौं सिकोरी है।
श्रोता मिल सकत नायं, काहू पै बखत नायं,
बैठिबे कौ ठौर काँयं? टाट है न बोरी है।।
मस्त सबहि टी.वी.में, बच्चन में, बीवी में,
खीर की कटोरी में,का अफीम घोरी है।
कविता के आयोजन, भए भाँड़- सम्मेलन,
गलेबाज सीस ताज,कविता छिछोरी है।।
किंतु कहा कर्यौ जाय? लिखे बिन न रह्यौ जाय,
दरद हू न सह्यौ जाय,आफत बटोरी है।
को है जो बांचैगौ? कौन इन्हें छापेगौ?
लिख-लिख कै कवितन ते,भर गई तिजोरी है।।
तरस गए मिलिबे कूँ, सुनिबे-सुनाइबे कूँ,
पीड़ा की बात कहा, जो कहें, सो थोरी है।
चलौ कछू गौर भयौ, मिलिबे कौ ठौर भयौ,
तोरी जो डोरी, वो what’s app नें जोरी है।।

-डाॅ बी के वर्मा ‘शैदी’

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