माँ शारदे वर दे | प्रतिभा इन्दु

शारदे वर दे मुझे
माँ शारदे वर दे !

है गहन पसरा अंधेरा ,
दूर है अबतक सवेरा ,
हो गई खुशियाँ तिरोहित
पास है मातम घनेरा ।
ज्ञान की उज्ज्वल किरण से
अर्श प्रखर भर दे !
माँ शारदे वर दे !

द्वेष की रेखा मिटा दो !
स्नेह अंतर में जगा दो !
भरत की पावन धरा पर
प्रेम की गंगा बहा दो !
मूक वाणी को जगत में तू
मुखर स्वर दे !
माँ शारदे वर दे !

क्या करूँ कुछ और अर्पित ,
गीत है तुझको समर्पित ,
कामना खुद की नहीं कुछ ,
है सकल बस विश्व के हित ।
अर्चना स्वीकार कर, स्वर को
अमर कर दे !
माँ शारदे वर दे !

प्रतिभा इन्दु

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