पीर तन्हा है और जवां तन्हा | आर.सी. वर्मा ‘साहिल’
पीर तन्हा है और जवां तन्हा | आर.सी. वर्मा ‘साहिल’
पीर तन्हा है और जवां तन्हा
हर बशर तन्हा, है जहां तन्हा
गोद में चाँद तारे हैं चाहे
फिर भी लगता है आसमां तन्हा
दाम में आ गये सभी पंछी
पेड़ तन्हा है आशियाँ तन्हा
मिल के बरपाते हैं कहर वर्ना
तीर तन्हा है और कमां तन्हा
साथ कोई नहीं किसी के भी
है दुखी तन्हा, शादमां तन्हा
गहमागहमी मची हुई लेकिन
है मकीं तन्हा और मकां तन्हा
ज़िन्दगी की नदी में हर कोई
है रवानी में पर रवाँ तन्हा
हाथ सब के उठे हुए चाहे
है मगर सब की ही फ़ुग़ाँ तन्हा
चल रहे साथ साथ सब लेकिन
हर कोई है यहाँ वहाँ तन्हा
न फ़क़त तन्हा तू यहाँ ‘साहिल’
जाएगा तू जहाँ, वहाँ तन्हा
‘साहिल’
पीर=बूढ़ा व्यक्ति, तन्हा= अकेला बशर=व्यक्ति, दाम=जाल शादमाँ=सुखी,प्रसन्न,
मकीं=मकान में रहने वाला
फ़ुग़ाँ=पुकार, फ़क़त=केवल