ऑचल बहॅक रहा | नींद नयन ना आई | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

माहिया/टप्पा छन्द
1.ऑचल बहॅक रहा

देखो आग लगी है,
चहुॅदिशि पवन बहे,
कोंपल मुकुल जगी है।1।

पवन बहे सुखदाई,
ऑचल बहॅक रहा,
नयन रहे अकुलाई।2।

नव विकास की राहें,
नित त्याग मॉगतीं,
खुशी भरी हों बॉहें।3।

तुमको कौन पुकारे,
प्रिय मुझे बता दो,
जल-थल कौन सवॉरे।4।

मैं कब तक धीर धरूॅ,
रात गुजर जाये,
अब कैसे जतन करूॅ।5।

मत इतना इतराओ,
कंचन माटी है,
खिलो मधुर मुसकाओ।6।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश;
रायबरेली 229010

2.नींद नयन ना आई

घर कब आओगे तुम बोलो,
राह तके तरुणाई,
अंग-अंग विष काम छोड़ता,
नींद नयन ना आई।टेक।

चमक रहा ऋंगार सोलहों,
कंचन काया देखो तुम,
स्नेहिल पारावार मचलता,
पलक-कोर में झॉको तुम।
कुटिल अधर मुस्कान बिखेरे,
सुधियों की अमराई।
घर कब आओगे तुम बोलो,
राह तके तरुणाई।1।

सपने थे सतरंगी सारे,
इन्द्रधनुष बन सॉसों में,
नीलाम्बर में मेघ उमड़ते,
मैं तेरी भुज-पॉशों में।
कहॉ गये तुम छोड़ मुझे,
मेरी याद न आई?
घर कब आओगे तुम बोलो,
राह तके तरुणाई।2।

घर की चौखट के सॉकल,
कब खनकेंगे सोच रही,
यौवन की झंझा से पीड़ित,
कामातुर सिर नोच रही।
लोग तरसते रूप-सुधा को,
कर लो तुम पहुनाई।
घर कब आओगे तुम बोलो,
राह तके तरुणाई।3।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;

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