मंगलमय संवत्सर होगा | नये वर्ष का अभिनन्दन | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश’

1.मंगलमय संवत्सर होगा

मंगलमय संवत्सर होगा,
स्नेह लुटाता दिनकर होगा।
पुलक थिरकती कण-कण धरती,
मधुमय जीवन रूचिकर होगा।टेक।

शस्य-श्यामला पावन भू पर,
बासन्तिक अनुराग मिलेगा,
कोंपल-कोंपल कलिका महके,
मलयज फाग-सुहाग मिलेगा।
वन-उपवन नव फुनगी महके,
गीत बसन्ती मधु स्वर होगा।
मंगलमय संवत्सर होगा।1।

उपादान प्रकृति के सारे,
साथ मनुज के खुशी मनायें,
जड़-जग-जंगम स्नेहापूरित,
खग-कुल कलरव नेह लुटायें।
सतरंग इन्द्रधनुष के सपने,
स्नेह लुटाता अम्बर होगा।
मंगलमय संवत्सर होगा।2।

नहीं सोचने का अवसर था,
रात घटी दिनमान बढ़ेगा।
धर्म सनातन बिगुल बजाये,
भारत का सम्मान बढ़ेगा।
चलो साथ सब नव विकास पथ,
शुभता मय नव गोचर होगा।
मंगलमय नव संवत्सर होगा।3।

रचना मौलिक,अप्रकाशित ,स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरैली (उप्र) 229010

2. नये वर्ष का अभिनन्दन।

नव नूतन उल्लास भरा मन,
झूम रहे सब धरा-गगन।
भाव सुमंगल लिए सनातन,
नये वर्ष का अभिनन्दन।टेक।

पत्र हीन तरु-तर उपवन के,
उजड़ा सा ऋंगार बाग का,
लजवन्ती बन कोंपल झॉकें,
स्नेह सुखद बह चला फाग का।
मधुरिम नव उल्लास बिखरता,
पुलकित रोम-रोम स्पन्दन।
भाव सुमंगल लिए सनातन,
नये वर्ष का अभिनन्दन।1।

धन धान्य भरे खलिहान-खेत,
आम्र-कुंज बौराए हैं,
हाड़-कॅपाती ठण्डक बीती
जीवन की निधि पाए हैं।
नई फसल के चना,मटर से,
नित बनते सुन्दर व्यंजन ।
भाव सुमंगल लिए सनातन,
नये वर्ष का अभिनन्दन।2।

दिव्य धर्म की यशो-पताका,
निखिल जगत लहराए,
स्नेहापूरित मानवता से,
जल-थल-नभ हरषाए।
मथुरा,काशी,अवध सॅवरते,
बहॅक रहा है वृन्दावन।
भाव सुमंगल लिए सनातन,
नये वर्ष का अभिनन्दन।3।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’हरीश;
रायबरेली

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