एक बासंती गीत | फिर से बसंत आया | नरेन्द्र सिंह बघेल
है ज़र्द -ज़र्द मौसम ,
और मौसमी हवाएं ।
इस प्यार के सफर में ,
हम तेरे गीत गाएं ।।
फिर से बसंत आया ,
सूनी है अमराई ।
तुम बिन गुजर गयी शब ,
फिर याद तेरी आई ।।
तनहाइयों मे अक्सर,
तेरे गीत गुनगुनाएं ।।
इस प्यार के ———
जीवन के इस सफर को ,
आबद्ध कर गये तुम ।
देकर के एक टोकन ,
प्रतिबद्ध कर गये तुम ।।
उस आस से बंधे हम ,
जाएं तो कहां जाएं ।।
इस प्यार के सफर में ,
हम तेरे गीत गाएं ।।
–नरेन्द्र सिंह बघेल
ज़र्द = पीला , पीतवर्ण
शब = रात