बूढ़े बाबा | सम्पूर्णानंद मिश्र

बूढ़े बाबा

नहीं हूं वहां मैं
जहां ढूंढ़ा जा रहा है मुझे

था कभी वहां मैं
उस दालान में
बूढ़े बाबा के पास
जहां इंसान पनही से नहीं
अपने आचरण से जोखा जाता था

जहां सुबह से रात तक
बूढ़े बाबा की आंखों में
असंख्य अभावग्रस्तों
की आशाएं पलती थीं

आज वहां
दालान नहीं है
बूढ़े बाबा भी नहीं हैं

एक बड़ी गगनचुंबी इमारत है वहां
जिसमें कुछ सभ्य लोग रहते हैं
और

बीच में कई दीवारें
सभ्यता की उठी हुई हैं
जहां केवल आवाज़ों की
आवाजाही होती है
दिलों की नहीं

मानवता की टांग
बाबा के जाने के बाद
बुरी तरह
टूटी हुई दिखाई देती है

और जहां
किसी यतीम की आशाओं
की असंख्य बार भ्रूणहत्या होती है

अब वहां दालान नहीं
बूढ़े बाबा भी नहीं

बस उनकी
धुंधली स्मृतियां ही
शेष हैं

सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874

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