‘इस बार फागुन में’ | रश्मि ‘लहर’
‘इस बार फागुन में’
खिला टेसू, पलक भीगी ,
सखी! इस बार कानन में।
चुनरिया भी बुलाती है;
मिलो इस बार फागुन में।।
हुए किसलय ये प्यासे हैं,
कपोलों को तनिक देखो!
कली गाने लगी चुपके;
प्रणय के छंद, मत रोको।
हवा हर पात को छूकर।
हुई ज्यों बावरी लगती!
कुसुम के कान में कहती,
मिलो इस बार फागुन में।।
कहीं राधा, कहीं कान्हा,
कहीं गोपी, कहीं ग्वाले।
कहीं मदमस्त – से भौरें,
करें मिल नृत्य मतवाले।!
हथेली में छुपा कर अंग,
भर कर मैं बसंती रंग!
मगन होकर यही कहती
मिलो इस बार फागुन में।।
कहीं इठला पड़ी लतिका,
कहीं वंशी लजाती है।
मधुर जो तान बजती है,
राधिका को लुभाती है!!
लरजती धार यमुना की,
कृष्ण के पद-कमल छलकी।
वह स्नेहिल हृदय कहती;
मिलो इस बार फागुन में।।
रश्मि ‘लहर’
इक्षुपुरी काॅलोनी,
लखनऊ-226002
उत्तर प्रदेश