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साथ कुछ पल | शैलेन्द्र कुमार

प्रीति भरी बातों के कुछ पल
प्रतीक्षारत मुलाकातों के कुछ पल
भंगिमाओं के, भावों के कुछ पल
रिक्तता के, आभावों के कुछ पल
अधिकार भरे मानों के कुछ पल
स्वप्न भरे अरमानों के कुछ पल
तुम्हारे साथ बिताने हैं।

अपनत्व के, चाहत के कुछ पल
तुम्हारी शोख शरारत के कुछ पल
सुकून के, राहत के कुछ पल
साथ में फुरसत के कुछ पल
तुममें मन के रम जाने के पल
वक्त के ठहर जाने, थम जाने के पल
तुम्हारे साथ बिताने हैं।

अटल विश्वास के कुछ पल
मधुर अहसास के कुछ पल
हमारी अजब प्रीति के कुछ पल
बीते अतीत के कुछ पल
तुम्हारे वो नृत्य, वो गीत के पल
फिर से, फिर – फिर से
तुम्हारे साथ बिताने हैं।

जब गिरें उठे तुम्हारी
दोनों पलकों के दल
देखता रह जाऊं तुम्हे
जब निर्मिमेश निश्चल
जीवन भर न बीते
कुछ ऐसे दिन, कुछ ऐसे पल
तुम्हारे साथ बिताने हैं।।

कभी खामोशी के कुछ पल
कभी मदहोशी के कुछ पल
कभी एक दूजे की बाहों में
समा जाने, खो जाने के पल
सर्वस्व अर्पित कर देने के,
सब कुछ पा जाने के पल
तुम्हारे साथ बिताने हैं।

निर्मम जग की धूप लगे जब
उर में छुप ओढ़ लूं मैं तेरा आंचल।
तू सर रख ले अपना, सीने पर मेरे
जब पांव थके तेरे, मन हो घायल।
तुम मुझे प्यार करो कोमल हाथों से
मै चूम लूं तुम्हारे अधरों के पाटल।
कुछ ऐसे भी पल कुछ वैसे भी पल
तुम्हारे साथ बिताने हैं।

शैलेन्द्र कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी
राही रायबरेली

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