आवाहन गीत | एक बार फिर आओ राम | राजेन्द्र वर्मा’ राज ‘
आवाहन गीत
एक बार फिर आओ राम
कनक भवन सूना लगता है सूनी गलियाँ चौबारे।
सूनी है जानकी रसोई, गुमसुम हैं ड्योढ़ी- द्वारे।।
पशु – पक्षी सब टेर रहे हैं, व्याकुल हैं सब नर – नारी।
वन – वाटिका सरोवर सूखे ,सूख रहीं नदियाँ सारी।।
सुबह बनारस की बेरौनक़ फ़ीकी की लगे अवध की शाम।
एक बार फिर आओ राम – – –
कहीं बालि बर्बाद कर रहे सामाजिक ताना बाना ।
कहीं मेघनाद जैसों ने नीति विरुद्ध युद्ध ठाना।।
कहीं सजी है सुवर्ण लंका, कहीं झोपड़ी टूटी है।
तेरी लीला भी तो भगवन् अपरम्पार अनूठी है।।
सबकी बुद्धि करो निर्मल प्रभु, सबका चित्त करो निष्काम।
एक बार फिर आओ राम – – –
केवट कई निहार रहे हैं उनकी नौका पावन हो।
आओ लखन, जानकी के संग दृश्य वही मन भावन हो।।
गंगा के तट राह देखते प्रभुवर कब तक आओगे?
पूछ रही सरयू की धारा फिर कब उतर नहाओगे?
अचर – चराचर भेज रहे हैं पाती नित्य तुम्हारे नाम ।
एक बार फिर आओ राम- – –
राजेन्द्र वर्मा’ राज ‘