Virah ki Agni / विरह की अग्नि- भारमल गर्ग
विरह की अग्नि बिंदी माथे पे सजाकर कर लिया सोलह श्रृंगार ।प्राणप्रिय आपकी राह में बिछाई पुष्प वह पगार ।। शय्या पर भी चुनट पड़ी बोले सारी सारी रात ।नींद … Read More
विरह की अग्नि बिंदी माथे पे सजाकर कर लिया सोलह श्रृंगार ।प्राणप्रिय आपकी राह में बिछाई पुष्प वह पगार ।। शय्या पर भी चुनट पड़ी बोले सारी सारी रात ।नींद … Read More