Baba kalpnesh ke maa ke geet/माँ ज्ञान दे दे
Baba kalpnesh ke maa ke geet
1.गीत लिखना चाहता हूँ
हरिगीतिका के छंद में मैं, गीत लिखना चाहता हूँ।
हर मानवों का प्यार पा मैं, मीत लिखना चाहता हूँ।।
कैसे कहूँ मैं पीर अपनी,पा रहा संसार से।
लाचार होता हूँ बड़ा ही,मानवी व्यवहार से।।
जो व्यक्ति जितना ही धनी है,दूर मानव प्यार से।
आधार छीने वह गरीबों, का सदा लाचार से।।
हे राम आओ आप बोलो,जीत लिखना चाहता हूँ।
हरिगीतिका के छंद में मैं, गीत लिखना चाहता हूँ।।
हे काव्य की आराधिका माँ, लेखनी पे आइए।
ये शब्द-अक्षर-भाव मेरे,नित समर्पित पाइए।।
उर पीर में नित वृद्धि होती,है शमन कर जाइए।
मैं चाहता हूँ आज लिखना, जो उसे लिखवाइए।।
क्यों आदमी से आदमी भय,भीत लिखना चाहता हूँ।।
हरिगीतिका के छंद में मैं, गीत लिखना चाहता हूँ।।
कमजोर कोई जोरवाला,आदमी के देह में।
यह शास्त्र कहते संत कहते,मृत्तिका के गेह में।।
पानी यहाँ पानी वहाँ है,उड़ रहे उस मेह में।
खोये हुए क्यों आप बोलें,मृगा जैसै नेह में।
हिय प्रीति सरिता धार उमड़े,प्रीत लिखना चाहता हूँ।।
हरिगीतिका के छंद में मैं, गीत लिखना चाहता हूँ।।
2. माँ ज्ञान दे दे
माँ ज्ञान दे दे लाल को,यह गीत तेरा गा सके।
संताप जग का बढ़ रहा,कुछ शाँति जग यह पा सके।।
वह गीत जिसमें प्यार हो,वह गीत जिसमें धार हो।
संसार का सुख सार हो,हर व्यक्ति का उद्धार हो।।
जिसको सभी जन गा सकें, मिल साथ में नर्तन करें।
हरि प्रेम पावन पान कर,स्वर साधना वर्तन करें। ।
हम भारती जन एक हैं, हम जीव सारे एक हैं।
नित आचरण में प्यार है,भाषा हमारी नेक है।।
स्वर साधना का मंत्र है,पावन हमारा तंत्र है।
जग जान ले भारत अहो,सुख साधना का यंत्र है।।
सीमा हमारी रक्ष तू,कर दे हमें भी दक्ष तू।
दुश्मन हमारे जो बनें, री कालिका ले भक्ष तू।।
दुर्गा तुम्ही-काली तुम्ही,वीणा धरे आ मात तू।
रुद्रा तुम्ही-भद्रा तुम्ही,माँ तोड़ दे हर घात तू।
आया शरण में लाल यह,अब निज करों निज गोद ले।
नन्हे तुम्हारा लाल है,अब चूमकर मन मोद ले।।
बाबा कल्पनेश |