कोहरे कि रातें/प्रदीप त्रिवेदी दीप
कोहरे कि रातें कोहरे कि रातें ठंडे बदन काँप रहे गातऔर काँप रहे मन शीत में ठिठुरती है कांपती जुबानें आज कटेंगी कैसे रात राम जाने। बिलख रहे पक्षी गण … Read More
कोहरे कि रातें कोहरे कि रातें ठंडे बदन काँप रहे गातऔर काँप रहे मन शीत में ठिठुरती है कांपती जुबानें आज कटेंगी कैसे रात राम जाने। बिलख रहे पक्षी गण … Read More