विभीषिका / सम्पूर्णानंद मिश्र
विभीषिका
मज़हब का नशा
जब ख़ून में उतर जाता है
तो इंसान
ख़तरनाक हो जाता है
कई हिस्सों में
वह बंट जाता है
बंटा था 1947 में
हमारा देश भी
मज़हब के नाम पर ही
मज़हब ज़हर है
जानलेवा है
और जिसने सूंघा इसको
उसकी भाषा बदल गई
उसका चरित्र बदल गया
नहीं बदलता है
पानी का रंग
बस स्वाद बदलता है
नहीं बदला
पानी का चरित्र
देश- विभाजन के समय भी
नहीं समझ में आ रहा था
कौन सा पानी पिएं
क्योंकि रंग एक ही था
सरहद के इस पार
और उस पार का
विभाजन में
भाषा के साथ
छूट गई मिट्टी
छूट गए अपने लोग
जिस जमीन पर
पुरखों ने अपनी
उम्मीदों का ख़ून बहाया था
आसान नहीं था
उसे छोड़कर जाना
लेकिन जाना पड़ा
दिल के कई टुकड़े हुए
केवल शरीर गया
आत्मा तो वतन में समा गई
विभाजन की विभीषिका
से ईश्वर सबको बचाएं
क्योंकि
इसकी आंच में
परिवार हो
या देश
सब जलकर खाक हो जाता है
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874