देखो आज हमारी हिन्दी | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

देखो आज हमारी हिन्दी

भारत है सिरमौर विश्व का,
सुन्दर भाल लगाये बिन्दी,
यू एन ओ में गूंज रही है,
देखो आज हमारी हिन्दी ।टेक।

तुलसी ,सूर,कबीरा हिन्दी,
सबसे कहती पीरा हिन्दी।
नानक,रसखान,बिहारी व-
श्याम दिवानी मीरा हिन्दी।
मुॅहबोली जो जन्मजात से,
सुख-दुख साथ निभाती हिन्दी।
यू एन ओ में गूंज रही है,
देखो आज हमारी हिन्दी।1।

आन,बान,अभिमान है हिन्दी,
वीरों का बलिदान है हिन्दी।
अभी दोगले बहुत देश में-
राष्ट्र-धर्म सम्मान है हिन्दी।
पढ़-लिख पदवी धारी से ही,
हो रही उपेक्षित ये हिन्दी।
यू एन ओ में गूॅज रही है,
देखो आज हमारी हिन्दी।2।

शिष्ट-निष्ठ परिमार्जित भाषा,
गॉव,गली,घर-घर की आशा।
चन्द्र-लोक पर आज तिरंगा-
हिन्दी पर है घना कुहासा।
युवा दिखाते युग को राहें,
तिरस्कार क्यों सहती हिन्दी।
यू एन ओ में गूॅज रही है,
देखो आज हमारी हिन्दी।3।

पर भाषा के मोह-जाल से,
कौन बचा है कुटिल काल से।
आज हुई असहाय भारती-
छद्म वेश धर देख भाल से।
शासन और प्रशासन गूॅगे-
दुख दोनों से झेले हिन्दी।
यू एन ओ में गूॅज रही है,
देखो आज हमारी हिन्दी।4।

स्नेह,प्यार की मधुरिम भाषा,
बस भारत को इसकी आशा।
उठो,बढ़ो हुंकार भरो तुम-
मीत बदल दो अब परिभाषा।
बर्षों से सन्त्रास झेलती,
कब होगी पटरानी हिन्दी।
यू एन ओ में गूॅज रही है,
देखो आज हमारी हिन्दी।5।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693

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