हिंदी से पहचान हमारी |बाबा कल्पनेश
हिंदी से पहचान हमारी,मगन करे नभ गान।
भारत माता के पुत्रों को,हिंदी है वरदान।।
अँग्रेजों अब भारत छोड़ो,हिंदी की ललकार।
थर्राए थे गोरे सुनकर,समझ गए निज हार।।
था अगस्त अड़तालिस का वह,गए राष्ट्र वे छोड़।
हिंदी की अँगड़ाई लखकर,नवल क्रांति ले मोड़।।
क्रांति दूत भारत के जागे,सुन हिंदी के बोल।
दुखद स्वप्न में उलझा भारत,खड़ा हुआ दृग खोल।।
नव प्रभात भारत ने देखा,मुक्त गगन के गीत।
पथ प्रशस्त भारत का अब तो,जागा राष्ट्र अतीत।।
रामचरितमानस का घर-घर,अब तो होता पाठ।
तुलसी की अब सफल साधना,शोभित नभ तक ठाठ।।
मीरा या कबीर के पद का,गूँज उठा संदेश।
राष्ट्र हमारा कृष्ण-राम का,जागा वह परिवेश।।
बाँटो राज करो का नारा,का होता अब अंत।
राजनीति के उच्च पदों पर,जब शोभित हैं संत।।
कृषि-ऋषि की यह भारत धरती,विजयी इनकी नीति।।
विश्वमान अब देख रहा है,हृदय परस्पर प्रीति।।
कृषि जागे तब तृप्त उदर हो,ऋषि देते निज बोध।
चलने को तत्पर अब भारत,पढ़ हिंदी का शोध।।
संस्कृति-संस्कार हो जागृत,हिंदी की यह चाह।
गुरुपद के महिम्न उच्चासन,का प्रशस्त हो राह।।
एक राष्ट्र यह एकल हिंदी,शुभमय जागृत योग।
भाषाएँ सहचरी अन्य मिल,दूर करें दुख रोग।।
माता से है बोली पाई,जग से भाषा जान।
मिल कर राष्ट्र निवासी करते,हिंदी गौरव गान।।
प्राकृत-संस्कृत से हिंदी का,जग में प्रादुर्भाव।
देवनागरी लिपि है प्यारी,जाने न ठहराव।।
भारत हिंदी भाषा से है,प्राप्त करे पहचान।
चंद्रयान भी चर्चित जग में,वेदों से ले ज्ञान।।
हिंदी दिवस मनाता भारत,लिख-लिख गीत महान।
विश्व गुरू कहलाए भारत,जगत कहे श्रीमान।।
बाबा कल्पनेश