दुर्मिल सवैया | हनुमान कृपा कर कष्ट हरो | बाबा कल्पनेश

दुर्मिल सवैया

विधान-112×8

हनुमान कृपा कर कष्ट हरो , लकवा मन में अति पीर भरे।
असहाय दुखी दिन दून हुआ , लख लें दृग में अति नीर भरे।।
तुमसे बलवान नहीं जग में , जिससे कहता जग पीर हरे।
प्रभु राम तुम्हे वरदान दिए , तव भक्त नहीं भव भीर डरे।।

अविवेक हरो हनुमान सभी , अवरोध बने चित में ठहरे।
जिससे यह जीवन ग्लानि भरा , उपजी वह दुर्बलता भहरे।
हरि उच्छल धार तरंग भरो , इस जीवन की सरिता हहरे।।
हरि भक्त रसामृत पान करे , यह डूब सदा अति ही गहरे।।

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