कब तक | पुष्पा श्रीवास्तव शैली
कब तक | पुष्पा श्रीवास्तव शैली
कब तक?
जल रहा है देश लेकिन मौन साधे,
किस दिशा से बात करना चाहते हो।
राख भी ठंडी हुई अब तो जले की,
कौन सा दुख याद करना चाहते हो।
चांद पर तुम खेलने जा तो रहे हों
अस्मिता से खेलना कब बंद होगा?
भीष्म जैसे चुप रहोगे कब तलक तुम?
चुप रहो,लेकिन सुनो अब जंग होगा।
अग्नि में ही हाथ तुमने खुद ही डाला,
अब तो केवल खून का ही रंग होगा।
चुप न साधो ,इस तरह अनजान बनकर,
कौन सा इतिहास रचना चाहते हो।
जल रहा है देश किन्तु मौन साधे,
किस दिशा से बात करना चाहते हो।
कब तलक भारत महाभारत सहेगा?
कब तलक मानस में ऐसा विष पालेगा।
जान लो यह भी महाभारत है प्यारों,
द्रौपदी की चीख फिर गूंजी धरा पर।
हो चुके बलवान लेकिन क्या कहूं अब
कब तलक अश्लीलता का गढ़ सजेगा।?
धिक है तुम पर मां भी बैठी सोचती है,
जन्म के ही वक्त तुम को मार देती।
क्या पता तुम ही मुझे निः वस्त्र करके,
वासना को तुम हम ही पर धार दोगे?
फूंक कर अपनी ही इज्जत के धुंए से,
कौन सा आकाश गढ़ना चाहते हो?
शाप देती हूं कि जाओ तुम न मरना,
मौत मांगो किन्तु जीवन और पाओ
खुद से ही दुर्गंध हो की सह न पाओ,
और मरना चाह कर भी मर न पाओ।
आत्म हत्या भी करो तो प्राण ठहरे
मौत सी हो जिंदगी और घर न पाओ।
पढ़ सको पढ़ लो मेरी यह इबारत,
धैर्य का संत्रास पढ़ना चाहते हो?
जल रहा है देश किन्तु मौन साधे
किस दिशा से बात करना चाहते हो।।
श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव शैली
रायबरेली उत्तर प्रदेश