लजाई प्रीत / पुष्पा श्रीवास्तव “शैली”
लजाई प्रीत / पुष्पा श्रीवास्तव “शैली”
दीप जगमग हुआ प्रीति ने मन हुआ।
गागरी भर उतरने लगी चांदनी।
मन से मन जब मिला,तम लजाकर कर गिरा,
लाज की ओढ़नी फिर पड़ी बांधनी
जब धरा सज गई,नव वधू बन गई।
चांद फिर धीरे धीरे उतरने लगा।
रह सकूंगा न मैं दूर तुमसे प्रिए।
ले लो आगोश में चांद कहने लगा।
मुस्कुराकर धरा फिर थिरकने लगी।
सरि के जैसी उफन कर हुई बांवरी।
मन से मन जब मिला,तम लज़ाकर कर गिरा।
लाज की ओढ़नी फिर पड़ी बांधनी।
तारे भी गुंथ गए उनकी पाजेब में,
रातरानी भी मल्हार का गाने लगी
जग गए जीव सोने को जो थे चले,
धुन मिलाकर के मृदंग बजाने लगे।
ले महावर चली भोर की लालिमा।
चांद लेकर विदा हो गया पाहुनी।
मन से मन जब मिला,तम लजाकर गिरा।
लाज की ओढ़नी फिर पड़ी बांधनी।।
पुष्पा श्रीवास्तव "शैली"
रायबरेली उत्तर प्रदेश