अकेलापन पिता का / शैलेन्द्र कुमार

अकेलापन पिता का / शैलेन्द्र कुमार

अक्सर चुप रहते हैं पिता मेरे
धीरे-धीरे मेरे कमरे में आते हैं
बैठ जाते हैं, बैठे रहते हैं
प्रतीक्षा करते हों जैसे मेरा
कि मैं बात शुरू करूंगा।

किंतु मैं बचता हूंँ कि
शुरू न हो जाए बात कहीं
इसलिए चुप रहता हूंँ।

यद्यपि बात
किसी गंभीर मुद्दे की नहीं होगी
मुझे पता है
वो कभी नाराज नहीं होते
आज भी नाराज नहीं होंगे
मुझे पता है।

बातों में न कोई शिकायत होगी
न कोई अदावत होगी
यह भी मुझे पता है।

फिर भी मैं बचता हूंँ
कि शुरू न हो जाए बात कहीं।

मैं मोबाइल में आंँखे गड़ा देता हूंँ
‘मैं बात करने का इच्छुक नहीं’
इशारों-इशारों में बता देता हूंँ।

पिता जी अक्सर
सब कुछ समझ कर
चले जाते हैं थोड़ी देर में
मेरे पास से उठकर।

फिर मैं लगा लेता हूँ
महिला मित्र को फोन
शुरू हो जाती हैं बाते मेरी।

और…
मैं भूल जाता हूंँ कि अभी
पिताजी बैठे थे
करने के लिए बात ही।

लेकिन हमेशा नहीं
भूल पाता मैं
दिमाग में हमेशा के लिए
रह जाती बात ये।

कई बार जब
मैं अपने दोस्तो से बात करता हूँ
तो वह पास आकर खड़े रहते हैं
यदि फोन पर हों हम तो
पास ही चुपचाप पड़े रहते हैं ।

उनकी हरकतों से
मैं चिढ़ जाता हूँ
पिता हैं मेरे सोचकर ये
मन ही मन खिन्न हो जाता हूँ।

सोचने लगता हूंँ जब
कि क्यों तंग करते हैं वो हमें यूं
तो कई सवालों से घिर जाता हूँ

पिता क्यों आकर
बैठ जाते हैं पास मेरे?
क्यों चाहते हैं
बाते करना मुझसे?
बस बेमतलब की
बाते करना
बिलकुल वैसी ही
जैसे
मेरा, मेरी महिला मित्र से
अर्थहीन बात करना।

मैं तो इसलिए बाते करता हूंँ
क्योंकि मैं हमेशा
अकेलापन महसूस करता हूंँ।

मेरे हैं दोस्त कई
पुरुष भी महिला भी
फिर भी…
अकेला महसूस करता हूँ
बात करने के बाद भी।

कहीं पिता भी तो
अकेलापन नहीं महसूस करते ?
मांँ अब नहीं हैं जीवित
कहीं उनके बारे में तो
नहीं सोचते रहते ?
उनके दोस्त भी
अब कहांँ जीवित हैं ?

उनकी सीमा, उनका घर है
वे बस बहू-बच्चों तक सीमित हैं।

और बहू बच्चों की सीमा में
एक ’अकेले’ पिता नहीं आते
उनका आकर पास बैठना
उनका अकेलापन
वे समझ नहीं पाते।

उनसे तो होती ही नहीं
बात मेरी किंतु
जब दोस्तों को बता रहा होता हूंँ
अपना हाल
हंँस-हंँस कर या
दुख व्यक्त करते हुए
तब
उनके चेहरे पर
उत्साह देखता हूंँ
पोपले गालों और
दंतविहीन ओंठो पर
मुस्कान देखता हूंँ
या फिर उनकी आंँखों में
अपने दुखों के
निसान देखता हूंँ
कुछ और नहीं
बस…

मेरी प्रगति मेरी समस्याएं
मेरी सफलताएं, असफलताएं
सुनना चाहते हैं वो
इन्ही में जीना और मरना
चाहते हैं वो।

शैलेन्द्र कुमार असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी

राजकीय महिला महाविद्यालय कन्नौज

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *