प्रदीप ‘प्यारे’ के मुक्तक | हिंदी कविता | उर्दू शायरी
प्रदीप ‘प्यारे’ के मुक्तक | हिंदी कविता | उर्दू शायरी
तुमने ही वक़्त पे नहीं आना
तुमने ही वक़्त मांगा हुआ है।
था सिलसिला अभी शुरु ही
तुमको छोड़कर जाना हुआ है
निकले थे मंजिल-ए-दिदार को
अब जाके ये कारवाना हुआ है।
तमाशा करना पड़ा जमाने में
तब जाके चूल्हा जलाना हुआ है।
मुफलिसी में गुजरती जिदंगी कैसे
अब तुमने भी रुपया कमाना हुआ है।
–प्रदीप ‘प्यारे’
ये भूख(पेट)भी भूखा है कई दिनों से,
प्रदीप ‘प्यारे’
अब साहब इसे भी एक रोटी चाहिए।
वक़्त का सन्नाटा कह रहा है,
कि रस्ते का कांटा कह रहा है,फेसबुक से बदलती नही किस्मत,
प्रदीप ‘प्यारे’
मोबाईल का डाटा कह रहा है।