पत्थरबाज़ | सम्पूर्णानंद मिश्र
ईर्ष्या
न केवल
जलाती है
तन और मन
बल्कि
जला देती है
सकारात्मक सोच की
लकीर भी
ईर्ष्या की रखैल
अंध- भक्तिन से
जन्म लेता है
एक विशेष जीव
जो नफ़रत, उन्माद
और देशद्रोह का खाद पाकर नया
रंग- रूप पाता है
जिसके कर्म की तलवारों
में धार
धार्मिक स्थलों के आकाओं
द्वारा बखूबी लगाई जाती है
और जो किसी
अबोध और निर्दोष
की गर्दन को उड़ाए बिना शांत नहीं होती है
इन्हें आज की भाषा में
पत्थरबाज़ कह सकते हैं
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874