दुल्हन है ऋंगार सृष्टि की / हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

दुल्हन है ऋंगार सृष्टि की,
स्नेहिल जीवन का आधार,
छुई-मुई सी कलिका पावन,
उर नेह-तरंगित पारावार ।1।

दृग-दीवट के दीप जलाये,
सपनों का अम्बार सजाये ,
सुधि-बुध में ही खोई रहती,
तरुण वेदना किसे बताये।2।

घूॅघट उठे गगन मुसकाये,
कब सुधियों का वह पल आये,
मकड़जाल में उलझी सॉसें,
ॠतु-परिवर्तन कब हो जाये।3।

मॉ की सीख पिता की छाया,
सबके ऊपर जीवन-माया,
मोह निशा की अमराई में,
तरुणाई ने रंग – जमाया।4।

साथ समय के चलते-चलते,
अधर-अधर मधु छन जाती है,
पा कर ॠतु की शुचि मादकता,
धरती दुल्हन बन जाती है।5।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693,
9125908549

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