raam- raajy/राम- राज्य-sitaram chauhan pathik
राम- राज्य स्थापित कर दो
जन-जन की सुन लो व्यथा ,
जो मन ही मन नित मरते हैं ।
मन में उनके आक्रोश भरा ,
विष पीते और निगलते है ।
भ्रष्टाचारी और चाटुकार ,
जन- तन्त्र नहीं जब सुनता है।
जब शेषनाग आहत होते ,
तब ही विष – तीर बरसते हैं ।
जनता सीधी है – भोली है ,
फिर भी विस्फोटक गोली है।
सिर से जब समय गुजर जाए,
वोटों से तन्त्र बदलते हैं ।
तुम धर्म- जाति आरक्षण में ,
उलझा कर वोट – बैंक भरते ।
जन-जन में युद्ध कराते हो ,
ऐसे नहीं लक्ष्य सऺवरते हैं ।
मन्दिर की चिंता को छोड़ो,
राम – राज्य स्थापित कर दो।
गुरुकुल शिक्षा पद्धति कर दो,
फिर देखो –फूल बरसते हैं ।
कभी बंगला- देश बनाया था,
नव – बलूचिस्तान बना दो तुम
आहत हुआ है स्वाभिमान ,
भारतवासी हाथ मसलते हैं ।
क्यों निजी स्वार्थी पचड़ों में ,
अपनी कुल- कीर्ति गऺवाते हो।
जागो – जागो हे कर्ण धार ,
मॄग- तॄष्णा में काहे विचरते हो ॽ
सुःशासन को सक्रिय करो ,
निष्ठा – नैतिकता स्तम्भ बनें ।
मत – पत्रों की वर्षा होगी ,
घन पथिक गर्जना करते हैं।।
सीताराम चौहान पथिक
दिल्ली