dene lagate hain ghaav/देने लगते हैं घाव-डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
dene lagate hain ghaav : डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र की रचना देने लगते हैं घाव का संदेश यह है कि मानव व्यर्थ में अनावश्यक न बोले जब वर्तालाप करे तो वह अपने लक्ष्य को ध्यान में रख कर करें और जब मानव अनावश्यक निरर्थक शब्द का उपयोग करता है तो उसे बड़ी सजा का सामना करना पड़ता है , इन्ही भावों के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है रचना।
देने लगते हैं घाव
आवृत्त रहते हैं
जीभ और दांत
के बीच जब तक निरर्थक शब्द
ख़तरे से मुक्ति है तभी तक
ज्योंहि जिह्वा के शिल्प- विधान
की चौहद्दी को तोड़कर
चलने लगते हैं
अनावृत्ति के पथ पर
सुनाई पड़ने लगता है
एक संकेत ख़तरे का
और देने लगते हैं घाव
अभी कल की बात है
बीसों आदमी घायल मिले
प्रयागराज सिविल लाइन चौराहे पर
रक्त- रंजित थे सभी
दिख रहे थे दांत उनके
बिल्कुल पलाश के फूल जैसे
सभी हतप्रभ थे
सकपकाए थे
नहीं समझ पाए थे वे
कि मिल जायेगी
इतनी बड़ी सजा
निरर्थक शब्दों को
शिल्प- विधान से मुक्त कराने की
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