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आत्मीयता की प्रतिमूर्ति : अशोक भईया

आत्मीयता की प्रतिमूर्ति : अशोक भईया

ये कहावत तो आप सबने खूब सुना और कहा होगा -“अपने तो अपने होते हैं”। मैंने भी सुना कहने पर मैं विश्वास नहीं करती । मानती हूं कि जिसने इस कहावत को लिखा कहा होगा सोच विचार कर ही किया होगा उसका मैं सम्मान करती हूं। लेकिन इस बात‌ को भी नजर अंदाज नहीं कर सकते कि ज्यादातर धोखा,चल, ईष्र्या द्वेष की भावना अपने ही रखते हैं। बस इसी को सोचकर लगता है कि अपने ऐसा करते हैं तो किस बात के अपने इससे अच्छा तो अजनबी और पराये लोग होते हैं कमसे कम आपके दिमाग में फितूर कि हलचल पैदा करके तो नहीं जाते।

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मेरी जिंदगी में अपनों का साथ बहुत कम ही लोगों से मिला जिसे न मेरा खून का रिश्ता रहा न परिवार का और न ही गांव का , न तो पहले से अगर के या मेरा व्यक्तिगत परिचय रहा । फिर भी उन अजनबी लोगों के साथ मेरे सम्बन्ध ऐसे प्रगाढ़ हो गये‌ -अपनों से भी‌ ज्यादा। आज जब भी कोई समस्या होती है मैं उन्हीं लोगों से फोन पर बात कर समस्या का समाधान करती हूं।

इन सब लोगों में मेरी जीवन की एक विशेष हस्ती शामिल है जिनके साथ मेरा साहित्यिक जुड़ाव के साथ -साथ व्यक्तिगत जुड़ाव भी बहुत है ।अभी ज्यादा दिन नहीं हुए लेकिन व्यक्तिगत जुड़ाव इतना कि हर सुबह बिना मैसेज किये लगता है कि दिन की शुरुआत अधूरी लगती है । सरल, सौम्य, लेखन में माहिर , पढ़ाने का अंदाज गजब का । उससे कहीं ज़्यादा आत्मीयता साधारण सरल अशोक भईया अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं। मेरा हिन्दी रचनाकार समूह से जुड़ने पर अशोक भईया से एक पाठक और रचनाकार के रुप में जुड़ाव हुआ ।

व्यक्तिगत कोई जुड़ाव नहीं था। एक दिन फेसबुक पर उनकी एक पोस्ट पढ़ी और प्रतिक्रिया दी जिसमें सर शब्द का प्रयोग किया तब दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता बहन -भाई के रूप में जवाब आया “बहुत बहुत धन्यवाद बहन”। थोड़ी देर तक निहारती रही कि अच्छे साहित्यकार अच्छे अध्यापक हर काम को बारीकी से समझने वाले किसी व्यक्ति ने मुझे बहन कहा । विश्वास ही नहीं हुआ इसलिए मैंने दुबारा मैसेज किया फिर वही बहन के खुबसूरत रिश्ते में लिपट हुआ जवाब।

सबसे दिलचस्प बात ये कि मेरी तारीफ कितनी भी करवा लो अशोक भईया से करते जायेंगे कुछ इस तरह से जैसे आकाश में पंछी उड़ता ही रहता है जब उसे प्यास लगती है तो जब तक पानी न मिल जाये तब तक थकता ही नहीं वैसे अशोक भईया से संतलाल सर ने तारीफ करना शुरू किया और अशोक भईया शुरू तो कभी नहीं थकते । अगर उनके लिए दो शब्द भी कह दूं तो ऐसी डांट लगायेंगे की होठ ठस। ये तो उनका बड़प्पन है। अभी अभी किसी कि दो पंक्तियां याद आ गयी –।

बहन भाई की यारी , सबसे प्यारी।

सब पर भारी , जोड़ी हमारी ।।

मेरी कुछ आडी तिरछी पंक्तियां “भगवान से दुआ है हमारी । चमकती रहे कलम तुम्हारी। ” ऐसे सुशील , आत्मीय सरल स्वभाव वाले भाई का बहुत बहुत धन्यवाद । धन्यवाद कहते हुए एक बात फिर याद आ गयी कि अभी डांट पड़ जायेगी धन्यवाद किस बात तुम भी न बहना—-। इसलिए ढेरों प्यार। और आपकी कलम से निकले बेशुमार शब्दों से कुछ सीखने की चाहत ।

आपकी खाली दिमाग वाली बहन

रत्ना सिंह

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