सांवले कदम | पुष्पा श्रीवास्तव शैली
सांवले कदम | पुष्पा श्रीवास्तव शैली
कड़कड़ाती ठंड में
मैंने देखा उन नन्हे नन्हे सांवलेक़दमों को प्लेटफॉर्म पर दौड़ते हुए,जो शायद सर्दी को
या हम सबको जो अपने आप को उपर से नीचे तक गर्म कपड़ों से ढके हुए थे,मुंह चिढ़ा रहे थे।
मेरी आंखों में वो ढाई वर्ष के नन्हे बच्चे के सांवले
कदम जैसे बस गए।जिसके एक पैर में काला धागा बांधा बंधा हुआ था।
मां ने शायद इसी दृष्टिकोण से बांधा होगा कि
उन कोमल नन्हे पांवों की मजबूती पर किसी की
नजर न लगे।
पिता की उंगली पकड़े हुए पिता कि चाल से
कदम से कदम मिलाते हुए छोटे छोटे डग भरते हुए गजब की उर्जा के साथ दौड़ता जा रहा था।
पीछे पीछे मां एक और देश के भविष्य को गोद में संभालती अा रही थी।
बहुत कुछ परिवर्तित हो गया।
बटन दबाते ही पूरी दुनियां की जानकारी,बटन दबाते ही विदेश में बैठे बेटे से बात,बटन दबाते ही
खुल जाते हैं कार के दरवाजे।
और भी बहुत कुछ बटन दबाते ही।
मैं जानना चाहती हूं ऐसे बटन का निर्माण कब
होगा कि बटन दबाते ही उन नन्हे क़दमों में एक
जोड़ी चप्पल पहना दी जाए।
ऐसे बटन का निर्माण कब होगा कि उनकी थाली में भी नमक रोटी के साथ दाल भी आ जाए।
ऐसे बटन के निर्माण का फार्मूला किन वै ज्ञानिकों
के दिमाग में दर्ज है।
काश ऐसा होता तो भारत पुनः सोने की चिड़िया हो जाता।
पुष्पा श्रीवास्तव शैली