बहती जैसे गंग-धार हो/हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
बहती जैसे गंग-धार हो/हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’ बहती जैसे गंग-धार हो। मॉ तू पावन निर्मल कल-कल, बहती जैसे गंग-धार हो। सर्वश्रेष्ठ कृति ,सृष्टि धरोहर, उर-उपवन की मधु बहार हो। उच्छ्वासों में … Read More