युद्ध | Yudh par kavita
युद्ध
छंटे नहीं हैं
युद्ध के पर्जन्य अभी
विनाश के अवशेष
छटपटा रहे हैं
हथियारों के गर्भ से
प्रसूत होने के लिए
अधिनायकवादी और जनतांत्रिक विचारधाराओं के
बीच चल रहा है यह युद्ध
नहीं स्वीकार है
ऊंचा हो कोई उससे
बिरादरी में समता की मुहर
किसी के भाल पर
नहीं देख सकता लगता हुआ
प्रयोग ही क्यों न करना पड़े
चाहे इसके लिए परमाणु बम का
अहं के दीमक के लिए
जब एक सुगम- पथ
निर्मित कर देता है
कोई भी राष्ट्र
तो धीरे-धीरे वह खोखला हो जाता है
![डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र](https://hindirachnakar.com/wp-content/uploads/2021/07/sampurnanand-mishra-poems-hindi.jpg)
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शिवपुर वाराणसी