ज़हरीले शब्द | सम्पूर्णानंद मिश्र
ज़हरीले शब्द | सम्पूर्णानंद मिश्र
आंखों में पल रही
क्रोध की चिंगारी
जब ज़हरीले शब्द बनकर
नसों में घुलती हैं
तब व्यक्ति की
भाषा तेज़ाब से भी ज़्यादा
ज्वलनशील हो जाती है
और तब
साफ़- साफ़
ख़तरा दिखने लगता है
जिसकी लपट से
न केवल धुंधुआती है धरती
बल्कि जलने लगता है आकाश
वैसे
हमारा प्रयोग निर्भर है
हमारी बुद्धि पर
लेकिन
जब क्रीतदासी हो जाती है
किसी और की यह
तो झुलस जाती है उस आग में
हमारी भाषा और
हमारा परिवार
सम्पूर्णानंद मिश्र
शिवपुर वाराणसी
7458994874