मोहब्बत हो गई जबसे | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

मोहब्बत हो गई जबसे | हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’

मोहब्बत की राहों पर, ,
कभी नाराज न होना ,
इसे तुम सरजमीं कहना,
यही है जिन्दगी अपनी,
यही है बन्दगी अपनी।1।

बहारों ने कदम चूमा,
गुलिस्तॉ ने कहा अपना ,
हवाओं के इशारे पर,
मिटी शर्मिन्दगी अपनी।
यही है जिन्दगी अपनी।2।

नजरों के इशारों ने,
ख्वाबों के नजारों ने,
हसीं जज्बात के लम्हे,
बदलती जिन्दगी अपनी।
यही है जिन्दगी अपनी।।3।

मोहब्बत हो गई जबसे,
लगे पढ़ने सभी किस्से,
कहा दोनों ने मिल करके,
मोहब्बत जिन्दगी अपनी,
यही है जिन्दगी अपनी।4।

रचना मौलिक एवम् अप्रकाशित तथा सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693

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