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औरत पर कविता | Kalpana Awasthi New Kavita

औरत पर कविता | Kalpana Awasthi New Kavita

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कल्पना अवस्थी

किन किन निगाहों से वो दो-चार होती है
औरत क्यों सारी उम्र अखबार होती है
कभी मां बनी, कभी बनी बहन
कभी बेटी बनी कभी आई पत्नी बन
इक ही जीवन में आकर स्त्री,
आखिर कितने किरदार होती है
औरत क्यों सारी उम्र अखबार होती है
सबके लिए खड़ी होती है वो बीमारी में दवा बन
सुहाग के लिए बन सावित्री
यमराज से भी उसकी जाती है ठन
पर अपने ही हिस्से में सुकून पाने के लिए, आखिर क्यों वो बीमार होती है
औरत क्यों सारी उम्र अखबार होती है
औरत ही घर की नींव है, उसे सब कुछ सहना पड़ता है
जहाँ सांस लेना भी घुटन भरा हो, ताउम्र औरत को वहाँ रहना पड़ता है
गैर जिम्मेदारी का ताना सुनकर भी औरत इतनी जिम्मेदार क्यों होती है
औरत क्यों सारी उम्र अखबार होती है

सहनशीलता के गुण में, वो परम शक्ति है
प्रेम व समर्पण में वो भगवद् भक्ति है
फिर यही अकेले ही गुनाहगार क्यों होती है
औरत क्यों सारी उम्र अखबार होती है

– कल्पना अवस्थी

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