hindi poetry aajamaish kalpana Awasthi kee/ आजमाइश
hindi poetry aajamaish kalpana Awasthi kee
आजमाइश
इतनी कड़ी आजमाइश से मुझको गुजरना पड़ा,
संवर रही थी जज्बातों से,पर टूट कर बिखरना पड़ा .
कुछ चिरागों की रोशनी से ,अंधेरों से लड़ रही थी मैं .
बसंत के मौसम में भी,पतझड़ के पत्तों -सी झड़ रही थी मैं .
जिंदगी की किताब के पन्ने में, कहानी बन छप रही थी मैं,
जेठ की गर्मी में खुले आसमां के नीचे तप रही थी मैं ,
क्या सोचा था, क्या किया यह सवाल सामने खड़ा था,
डरा रही थी मुश्किलें, पर हौसला उससे भी बड़ा था,
कह दिया मैंने भी, डरा मत मैं मुश्किलों से नहीं डरती,
जो असंभव हो बस उसे ही संभव मैं करती ,
फिर उस जगह भी मुझे खुद को साबित करना पड़ा,
इतनी कड़ी आजमाइश से मुझको गुजरना पड़ा ।
मानती हूँ कल्पना हूँ ,पर अपनी कल्पना साकार करूंगी ,
मैं बिना कुछ सबसे अलग किए चैन से कहाँ मरूंगी,
मैं इक सीख, एक मिसाल बन जाऊं औरों के लिए ,
बस ऐसा हो जाए, जो जैसा चाहे मेहनत से,
बस वैसा हो जाए,
जो गुनाह किया ही नही, ‘कल्पना’ को उसी का जुर्माना भरना पड़ा,
इतनी कड़ी आजमाइश से मुझको गुजरना पड़ा।
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