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नवल सृजन के अंकुर फूटें/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

नवल सृजन के अंकुर फूटें

शान्ति दूत बन काल-चक्र को,
हमें नियंत्रित करना होगा ,
रक्षा कातर मानवता की,
सत्य-न्याय हित करना होगा। टेक।

उजड़ा घर , वीरान शहर है,
विश्वपटल पर मचा कहर है,
सिसके,तड़पे,हॉफे जीवन,
पल-पल हर मनहूस पहर है।
भीगी पलकों की अलकों में,
इन्द्रधनुष -रंग भरना होगा।
शान्ति दूत बन काल-चक्र को,
हमें नियंत्रित करना होगा।1।

वन,उपवन सब उजड़ रहे हैं,
रिश्ते सारे बिगड़ रहे हैं,
स्वप्न हुए सब धूल-धूसरित,
फिर भी देखो अकड़ रहे हैं।
विश्व युद्ध न होने पाये,
शान्ति हेतु कुछ करना होगा।
शान्ति दूत बन काल-चक्र को,
हमें नियंत्रित करना होगा।।2।

हठ छोड़ सहज कर हृदय सरल,
खुशियों से अम्बर भर दो,
नवल सृजन के अंकुर फूटें,
जगमग जग सुन्दर कर दो।
दिव्य संस्कृति,संस्कार से,
इसे अलंकृत करना होगा।
शान्ति दूत बन काल-चक्र को,
हमें नियंत्रित करना होगा।3।

चलें अहिंसा के पथ-पावन ,
कलुषित भाव-विचार मिटे,
जन-जन का उत्थान सुनिश्चित,
विध्वंसक कुविचार हटे।
सुमधुर स्नेहिल वृष्टि प्रदायक,
जीवन-अर्थ बदलना होगा ।
शान्ति दूत बन काल-चक्र को,
हमें नियंत्रित करना होगा।4।

-हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली (उ-प्र)-229010
9125908549
9415955693

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