आ रहे राम। हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

आ रहे राम। हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

आ रहे राम,इतिहास नया फिर गढ़ने को,
दुष्ट दानवों को पछाड़ आगे बढ़ने को।टेक।

चर-अचर प्रफुल्लित लगते हैं,
मधु वारिद नेह बरसते हैं।
सोंधी गन्ध महकता मरुथल,
गिरि-निर्जन आज महकते हैं।
ऋतुराज बॉटता सुरभि मनोहर अपने को,
संत्रास सोचता संशय में क्या रहने को।
आ रहे राम,इतिहास नया फिर गढ़ने को,
दुष्ट दानवों को पछाड़ आगे बढ़ने को।1।

सच की जीत सुनिश्चित होती,
क्षमा-दया जब गुमसुम रोती।
तार-तार मर्यादा मैली-
नयन-कोर ना बहते मोती।
जीवन में अभिशप्त युद्ध खुद से लड़ने को,
शोषित-दलित जनों की हर दुविधा पढ़ने को।
आ रहे राम,इतिहास नया फिर गढ़ने को,
दुष्ट दानवों को पछाड़ आगे बढ़ने को।2।

मत सहना अन्याय कभी तुम,
परहित अर्पित करो सभी तुम।
जग-जीवन में ओज भरेंगे,
चलो राम के साथ अभी तुम।
पावन पथ पर बढ़कर पातक-वध करने को,
सबको लेकर साथ सुमंगल पथ चलने को।
आ रहे राम, इतिहास नया फिर गढ़ने को,
दुष्ट दानवों को पछाड़ आगे बढ़ने को।3।

अविरल सरयू की जल धारा,
करता जग अवगाहन सारा ।
छल-छद्म-द्वेष-पाखण्ड भूल,
पाता जीवन यहीं किनारा।
मातृ-भूमि हित जन्म हुआ बस मरने को,
चिन्तित मत हो प्राण धर्म-ध्वजा ले चलने को।
आ रहे राम, इतिहास नया फिर गढ़ने को,
दुष्ट दानवों को पछाड़ आगे बढ़ने को।4।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010

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