” एक बार फिर आओ राम” | आवाहन गीत | राजेन्द्र वर्मा “राज”

हे !इस जग के तारणहार, जन- जन का है तुम्हें प्रणाम।
आकर पावन करो धरा को ,आलोकित कर दो हर धाम।।
एक बार फिर आओ राम ।

राह तुम्हारी देख रही हैं कितनी ही बेज़ान शिलाएंँ।
पंथ बुहारे शबरी बैठीं आकर उनके बेर तो खाएं।।
देखो कैसे सजी अयोध्या पल – पल करती आवाहन।
हे प्रभु !आओ और प्रफुल्लित कर दो सबका ही तन – मन।।
करो हृदय आलोकित सबके ,सबके हृदय विराजो राम।
एक बार फिर आओ राम। (1)

घूम रहे मारीच यहांँ पर नित छल करते रहते हैं।
संन्यासी के भेष में कितने दानव फिरते रहते हैं।।
फिरती हैं असहाय जानकी दर -दर रावण खड़े हुए।
पक्षी – राज जटायु भी हैं पंख कटाए पड़े हुए।।
सीता और जटायु का आकर उद्धार करो श्री राम।।
एक बार फिर आओ राम। (2)

कई समंदर अहंकार में चूर हुए जाते हैं।
अपनी सारी सीमाओं से दूर हुए जाते हैं।।
उनका दंभ दूर करने को फिर से सर संधान करो।
अपने भक्तों का जीवन- पथ हे प्रभु !कुछ आसान करो।।
रावण और कुंभकर्णों का कर दो फिर से काम तमाम।।
एक बार फिर आओ राम। (3)

राजेन्द्र वर्मा “राज”

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